Wednesday, December 26, 2007

जब से लगन लगी !


जब
से लगन लगी !

शब्द मेरे और सोच तुम्हारी
बनी नयी एक कविता न्यारी
उतर गयी कागज़ पर सारी
ऐसी प्रीत पगी !

गीतों मे मिलती और खोती
सांस सांस मे ख़ुशी पिरोती
एक नया एहसास भिगोती
सुर कि बही नदी !

अनजाने रिश्तों का बन्धन
यादों मी डूबा डूबा मन
प्यार भरा कैसा अपनापन
बढ़ता घडी घडी !

Tuesday, December 18, 2007

आओ यादों के फूल सजा ले हम....





आओ यादों के फूल सजा ले हम

कभी तुम याद आओ हमे

कभी याद तुम्हे आये हम

दिल कि चौखट पे घावों ने किये हैं बसेरे

कभी सहलाओं तुम कभी मरहम लगाए हम

यूं न मिलना हम से जैसे मिलते हो किसी अजनबी से

कभी लगाना गले हमको

कभी पहनाये हार बाहों के हम

मेरे दिल पे आज भी हैं

यादें उन मुलाकातों कि

कभी आना तेरा दहलीज पेर मेरी

कभी परदों से देखते थे हम

आये सनम न कटे अब इन्जेज़ार की ये घड़ियाँ

यादों की फूलों से कैसे ज़िंदगी गुजारे हम


Monday, December 17, 2007

तब याद तुम्हारी आती है....


तब याद तुम्हारी आती है....

जब यूँही कभी बैठे बैठे,
कुछ याद अचानक आ जाये

हर बात से दिल बेजार सा हो,
हर चीज़ से दिल घबरा जाये

करना भी मुझे कुछ और ही हो,
कुछ और ही मुझ से हो जाये

कुछ और ही सोचूं में दिल में,
कुछ और ही होठों पर आ जाये

ऐसे ही किसी एक लम्हे में,
चुपके से कभी खामोशी में

कुछ फूल अचानक खिल जाये,
कुछ बीते लम्हे याद आयें

तब याद तुम्हारी आती है ...


जब चांदनी दिल के आँगन में,
कुछ कहने मुझ से आ जाये

इक ख्वाबेदा से छुते कोई,
एहसास परेशान चेहरे पर आ जाये

जब जुल्फ परेशान चेहरे पर,
कुछ और परेशान हो जेए

कुछ दर्द भी दिल में होने लगे,
और सांस भी बोझल हो जाये

ऐसे ही किसी एक लम्हे में,
चुपके से कभी खामोशी में

कुछ फूल अचानक खिल जाये,
कुछ बीते लम्हे याद आये

तब याद तुम्हारी आती है...


जब शाम ढले चलते चलते,
मंजिल का न कोई नाम मिले

इक हँसता हुआ आगाज़ मिले,
इक रोता हुआ अंजाम मिले

पलकों के लरजते अश्कों से,
इस दिल को कोई पैगाम मिले

और सारी वफाओं के बदले,
मुझ को ही कोई इल्जाम मिले

ऐसे हे किसी एक लम्हे में,
चुपके से कभी खामोशी में

कुछ फूल अचानक खिल जाये,
कुछ बीते लम्हे याद आये

तब याद तुम्हारी आती है....

Wednesday, December 5, 2007

मिर्जा गालिब

की वफ़ा हमसे तो ग़ैर उसे जफ़ा कहते हैं
होती आई है के अच्छों को बुरा कहते हैं


आज हम अपनी परेशानी-ए-खातिर उनसे
कहने जाते तो हैं, पर देखिए क्या कहते हैं


अगले वक्तों के हैं ये लोग, इन्हेंन कुछ न कहो
जो मय-ओ-नगमों को अन्दोहरूबा कहते हैं


[अन्दोहरूबा=cure for pain or sorrow]


दिल मैं आ जाये है, होती है जो फुरसत गश से
और फिर कौन से नाले को रसा कहते हैं ?


[गश=senseless/in a faint; रसा=with a long reach]


है पर-ए-सरहद-ए-इदराक से अपना मस्जूद
किबले को, अहल-ए-नज़र, किब्लानुमा कहते हैं


[पर-ए-सरहद-ए-इदराक=beyond the boundaries of knowledge]
[मस्जूद=to whom one bows i.e. God]


पा-ए-अफागार पे जब से तुझे रहम आया है
खार-ए-राह को तेरे हम मैहर-ए-गिया कहते हैं

[पा-ए-अफागार=wounded feet; खार-ए-राह=thorn in the road]
[मैहर-ए-गिया=(blade of) grass of kindness]


इक शरार दिल मैं है, उस से कोई घबराएगा क्या
आग मतलब है हमको, जो हवा कहते हैं



देखिए लाती है उस शोख की नाख्वत क्या रंग
उस की हर बात पे हम नाम-ए-खुदा कहते हैं


[नाख्वत=pride]


वहशत-ओ-शेफ्ता अब मर्सिया कहवें शायद
मर गया "ग़ालिब"-ए-आशुफ्तानावा कहते हैं


[वहशत-ओ-शेफ्ता=two poets of that time; मर्सिया=eulogy/poem of sorrow]
[आशुफ्तानावा=one who speaks nonsense]

Wednesday, November 7, 2007

मैं ही तो मुहब्बत हूँ .....!!

मैं खयालो में, मैं सवालो में
मैं कभी सुबह, मैं कभी शाम
मैं कभी रात, मैं कभी जज्बात
मैं जीत हूँ, मैं प्रीत हूँ
मैं आँख का इशारा, मैं दिल का हुलारा
मैं कहीं धड़कन मैं कहीं साँसें
मैं कहीं दिलबर, मैं कहीं महबूबा
मैं कहीं यार, मैं कहीं आप रब्ब

बता मुझे, मैं कहाँ नहीं
मैं यहाँ, मैं वहाँ
मुझसे ही यह सारा जहाँ
मुझसे कोई जुदा नहीं
मैं तुझे में मैं मुझ में
मैं कभी तेरा दिलबर हसीं
कभी तेरा जानाशीन
मैं हर वक़्त तुझ में
बस कहते हैं मुझे पर्दानशीं

मैं जो शब में हूँ
मैं ही तो मुहब्बत हूँ.......!!

Friday, November 2, 2007

मिटटी मेरी कब्र से चुरा रहा है कोई………

मिटटी मेरी कब्र से चुरा रहा है कोई………


मर के भी याद मुझे आ रहा है कोई ………
ए खुदा दो पल की जिंदगी और दे दे ……॥

उदास मेरी कब्र से जा रहा है कोई ...........

उस को चाहा भी तो इजहार करना नही आया
कट गई उमर मगर प्यार करना नही आया

उस ने माँगा भी अगर कुछ जुदाई मांगी

और हम थे के हम को इनकार भी करना नही आया

इक ही लम्हे में सदियों की जुदाई दे दी………
अजमाईएश थी के हम दिल के कितने हैं………

हम ने खैरात में उस बुत को खुदाई दे दी…





Tuesday, October 30, 2007

न जाये.....

"मैं नज़र से पी रह हूँ,
ये शमा बदल न जाये
न झुकाओ तुम निगाहें,
कहीं रात ढाल न जाये
मेरी ज़िंदगी के मालिक,
मेरे दिल पे हाथ रखना
के तेरे आने कि ख़ुशी में,
कही मेरा दम निकल न जाये"

Monday, October 29, 2007

रक्स करती हें...!!!!

मेरे खवाबों के गुलशन मैं,
खिजाएँ रक्स करती हें,
मेरे होंठों कि लर्जिश मैं,
वफायें रक्स करती हें...

मुझे वो लाख तड़्पाये,
मगर उस शख्स कि खातिर,
मेरे दिल के अंधेरों मैं,
दुआएं रक्स करती हें....

उसे कहना के लौट आये,
सुलगती शाम से पहली,
किसी कि खुश्क आंखों मैं,
सदायें रक्स करती हें..........

खुदा जाने कैसी कशिश है , तेरी यादों मैं...???
मैं तेरा jikra छेडूँ तो ,
हवाएं रक्स करती हें...!!!!

क्यों तुम मुझको अच्छी लगती हो ??

इक दिन जब तुमने ये कहा था मैं तुमको अच्छा लगता हूँ
उस दिन से मैं अपने आप को भी कुछ अच्छा लगता हूँ
उससे पहले सोचा नही था के मैं कैसा लगता हूँ
तुमने कहा था रंग नीला मुझ पर अलग ही लगता है
उसके बाद से रंग नीला मैं पहनता हूँ
खुद को देखा नज़र से तेरी तब ही कुछ मैं अच्छा लगा
वरना सोचा कभी नही था कि मैं कैसा लगता हूँ
तुम मुझको बस जैसी हो वैसे ही अच्छे लगती हो
खोई खोई आँखें तुम्हारी उनमे मैं खो जाता हूँ
लापरवाह सी हंसी तुम्हारी मुझको हिम्मत देता है
एक नज़र जो मुझको देखो फूल सा मैं खिल जाता हूँ
और क्या क्या मैं बतालाओं क्यों तुम मुझको अच्छी लगती हो ??

आसान नही

"उनकी चाहत दिल से उनका एहसास साँसों से
अंजान करना इतना आसान नही

नाम उनका आते ही खिल जाता है दिल
आंखों से वो चमक मिटाना इतना आसान नही

भूलने कि कोशिश में और याद आते है वो
तनहाइयों में उनकी याद से बच पाना इतना आसान नही

जिधर देखु वो ही नज़र आते है
नज़रों से उनकी छवि हटाना इतना असं नही

मजबूर है वो के हैं हमसे दूर, न मिल पाएं तो क्या
पर दिल में से उन्हें मिटाना ,भूल पाना इतना आसान नही"

अजीब पगली सी लड़की है

मुझे हर ख़त मैं लिखती है

“मुझे तुम याद करते हो?
तुम्हे में याद आती हूँ ?
मेरी बातें सताती हैं?
मेरी नींदें जगाती हैं?
मेरी आंखें रुलाती हैं?
दिसम्बर के सुनहरी धुप मैं अब भी टहलते हो?
किसी खामोश रस्ते से
कोई आवाज़ आती है?
कपकपाती सर्द रातौं मैं
तुम अब भी छत पे जाते हो?
फलक के सब सितारों को
मेरी बातें सुनते हो?
किताबोंसे तुम्हारे इश्क मैं कोई कमी आई?
या मेरी याद के शिद्दत से आंखों मैं नमी आई?"

अजीब पगली सी लड़की है continue..

अजीबी पगली सी लड़की है
मुझे हर ख़त मैं लिखती है..

जवाब में उस को लिखता हूँ ..
मेरी मसरूफियत देखो !
सुबह से शाम कोलेज़ मैं
उम्र का दिया जलता है
फिर उस के बाद दुनिया कि
कई मजबूरियां पावों मैं
बैड़ी दाल रखती हैं!!!
मुझे बे-फिक्र, चाहत से भरे सपने नही दिखते
तेहेलने, जगने, रोने कि मोहलत ही नहीं मिलती
सितारो से मिले अरसा हुआ..नाराज़ हूँ शायद
किताबों से शौक़ मेरा अभी
वैसे हे क़येम है
फर्क इतना पड़ा है
अब उन्हें अरसे मैं पढता हूँ
तुम्हइन किस ने कहा पगली तुम्हे में याद करता हूँ
के मैं खुद को भुलाने कि जुस्तजू मैं हूँ
तुम्हे न याद आने कि जुस्तजू मैं हूँ
मगेर यह जुस्तजू मेरी बहुत नाकाम रहती है
मेरे दिन रात मैं अब भी तुम्हारी शाम रहती है
मेरे लफ्जोंन कि हेर माला तुम्हारे नाम रहती है
तुम्हे किस ने कहा पगली तुम्हे में याद करता हूँ !!
पुरानी बात है जो लोग अक्सर गुनगुनाते हैं
उन्हें हम याद करते हैं जिन्हें हम भूल जाते हैं

अजीबी पगली सी लड़की है

मेरी मसरूफियत देखो
तुम्हे दिल से भुकुं तो तुम्हारी याद आये न!
तुम्हे दिल से भुलाने कि मुझे फुरसत नही मिलती
और इस मसरूफ जीवन मे
तुम्हरे ख़त का एक जुमला
“तुम्हें मैं याद आती हूँ ?”
मेरी चाहत कि शिद्दत मैं कमी होने नही देता
बहुत रातें जगाता है मुझे सोने नही देता
सो अगली बार अपने ख़त मैं यह जुमला नही लिखना

अजीबी पगली सी लड़की है
मुझे फिर भी ये लिखती है
मुझे तुम याद करते हो?
तुम्हे मैं याद आती हूँ ?”

कुछ ऐसे...

के मेरी आंखों को कुछ अच्छा न लगे कुछ ऐसे तुम मुझसे नज़रें मिलाना
के दिन का हर पल हर लम्हा सुहाना लगे कुछ ऐसे मेरे साथ तुम वक्त बिताना

के हँसी मेरे लबों से उतरना न चाहे कुछ ऐसे मेरे लिए तुम मुस्कुराना
के हो जाये मुझे खुशियों कि आदत कुछ ऐसे मेरी ज़िंदगी से ग़मों को मिटाना

के मुझमे भी जगे सपने सच करने कइ उम्मीद कुछ ऐसे तुम मेरे लिए ख्वाब सजाना
के मैं हर रात का इंतज़ार करूं कुछ ऐसे तुम मुझे आसमान का वो तारा दिखाना

के तुम देखते रहो मुझे हर दम कुछ ऐसे मुझे अपने सामने बिठाना
के मैं नाराज़ होना चाहूँ बार बार कुछ ऐसे तुम मुझे रूठने पर मानना

के करता रहूँ तुझे प्यार उम्र भर कुछ ऐसे शमा-ए-मोहब्बत को जलाना
के हो मेरा बसेरा कहीं और नामुमकिन कुछ ऐसे कुछ ऐसे मुझे अपने दिल मी बसाना

के बन जाओ मेरे दिल कि धड़कन कुछ ऐसे तुम मेरे दिल मे समाना
के नामंजूर हो मुझे किसी और का होना कुछ ऐसे तुम मुझे अपना बनाना

के मुझे बारिश कि बूंदे भी अधूरी लगे कुछ ऐसे मुझ पर तुम प्यार बरसाना
के बन जाये हम मोहब्बत कि मिसाल कुछ ऐसे तुम इस रिश्ते को निभाना

के ज़िंदगी का आखरी पल भी हसीं लगे कुछ ऐसे मुझे तुम गले से लगाना
के मौत भी हमे जुदा न कर पाए कुछ ऐसे मैं तेरा हो जाऊं...

कुछ ऐसे॥तुम मेरी हो जाना !!

Sunday, September 23, 2007

तो आंखें खूब रोती हैं.......

ख़्याल दिल मैं आते हैं तो आंखें खूब रोती हैं,
दर्द दिल मैं जगाते हैं तो आंखें खूब रोती हैं..

तुम्हारे बाद चाहत के सभी पंछी उड़ गए,
कहीं भी दिल लगाते हैं तो आंखें खूब रोती हैं..

तेरी तस्वीर, अधूरे खत तू जला दिए हम ने,
अब पानी पे नक्श बनाते हैं तो आंखें खूब रोती हैं..

घटा आवारगी मैं जब स्याह चोला पहनती है,
परिंदे जब सताते हैं तो आंखें खूब रोती हैं..


के जब भी शाम ढलती है मेरी किस्मत के सब तारे,
फलक पर जगमगाते हैं तो आंखें खूब रोती हैं..

सर्द तारीख रातों मैं स्याह सावन कि बारिश मैं,
दर्द जब मुस्कुराते हैं तो आंखें खूब रोती हैं॥

You can also read it on wordpress.com at

www.jeetneeli.wordpress.com

Friday, September 21, 2007

याद आया बहुत...............!!!!!




आज उस की याद ने हमें तड़्पाया बहुत
आज ना चाहते हुए भी वो याद आया बहुत


उस के बाद तो जैसे वहशतों से दोस्ती हो गयी
फिर क्यों आज तान्हाइयों ने डराया बहुत



वो मेरा था, मेरा है, मेरा रहेगा
हम ने इस ख़याल से खुद को बहलाया बहुत



शमा के जलने पर हम अफ़सोस करें क्यूँ
हम ने भी मानिंद शमा खुद को जलाया बहुत............

Sunday, September 16, 2007

अजनबी हो कर भी दिलनशीं तुम हो ....................

ऐसा लगता है मेरी जिन्दगी तुम हो
अजनबी हो कर भी दिलनशीं तुम हो
अब कोइ आरजू नहीं बाक़ी
जस्तजू मेरी आखरी तुम हो
मैं जमीन पर घना अँधेरा हूँ
आसमानों कि चांदनी तुम हो

दोस्तो से कि वफ़ा कि उम्मीद
किस जमाने के आदमी तुम हो

ऐसा लगता है की मेरी जिन्दगी तुम हो
अजनबी होकर भी दिलनशीं तुम हो !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Saturday, September 15, 2007

Hamesha Haar Jaata Hoon...............

किसी से प्यार करता हूँ तो हमेशा हार जाता हूँ

में जितनी बार करता हूँ हमेशा हार जाता हूँ



कभी शाम से पहले किसी जाना की आंखों से

ये आँखें चार करता हूँ हमेशा हार जाता हूँ



कभी किसी महफिल मैं वफ़ा की गुफ्तुगू

पर जब तकरार करता हूँ हमेशा हार जाता हूँ



निगाहों में तो दूसरों से बाज़ी जीत जाता हूँ

तो जब इज़हार करता हूँ हमेशा हार जाता हूँ



कई शायद !! इस दफा मुझे अपना बना ले कोई

हमेशा प्यार करता हूँ हमेशा हार जाता हूँ ॥


Wednesday, September 5, 2007

जिसे तुम प्यार किया करते थे........


मैं वोही हूँ जिसे तुम प्यार किया करते थे
दिन में सौ बार मेरा नाम लिया करते थे.

आज क्या बात है क्यों मुझसे खफा बैठे हो
क्या किसी ओर का दिल अपना बना बैठे हो ?

फासले पहले तो इतने ना हुआ करते थे
मैं वोही हूँ जिसे तुम प्यार किया करते थे

मन के ये गम है कोई सौगात नही
तुम हमें अपना कहो ऐसे भी हालात नही

अगर भूल गए हो , तो कोई बात नही
ज़ख्म तो पहले भी इस दिल पे लगा करते थे
मैं वोही हूँ,जिसे तुम प्यार किया करते थे

जीं में आता है के आज तुम्हें तड़्पा दूं
दर्द जो तुमने दिए वो सुब तुम को लौटा दूं

अगर भूल गए हो तो ये बतला दूं
तुम मुझे हासिल-ए- अरमान कहा करते थे
मैं वोही हूँ जिसे तुम प्यार किया करते थे


Monday, August 27, 2007

रोना आया.....

ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया,

जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया..

यूं तो हर शाम उम्मीदों मे गुज़र जाती थी,

आज कुछ बात है, जो शाम पे रोना आया..

कभी तकदीर का मातम, कभी दुनिया का गिला,

मंज़िल-ए-इश्क मे हर गम पे रोना आया...

जब हुआ ज़िक्र ज़माने मे मोहब्बत का

मुझको अपने दिल-ए-बेकाम पे रोना आया.....

टूट जाओगी...!!!


बस एक बार समझ लो यही गनीमत है।

मैं वो नहीं जिसे रोज़ आजमाओगी

बस एक दो तलक़ ही बहुत हैं जीने के

बहुत से रिश्ते बनाओगी तो टूट जाओगी...!!!

Thursday, August 23, 2007

अहसास नही...!

बंद होठों से जो एक बात कही थी मेने,
तुझको
अब तक मेरी उस बात का अहसास नही,

मेरे जज्बात का तू साज़ नही सुन सकता,
क्यों मेरे प्यार कि आवाज़ नही सुन सकता,

ऐसा लगता है कोई दिल ही तेरे पास ही नही,
तुझको अब तक मेरी उस बात का अहसास नही,

गूंजती है मेरी धड़कन कि सदा तेरे लिए,
मेरी आंखों मे अभी तक नशा है तेरे लिए,

में बनू जाम मगर तुझको मेरी प्यास नही,
तुझको अब तक मेरी उस बात का अहसास नही,

बंद होठों से जो एक बात कही थी मेने,
तुझको अब तक मेरी उस बात का अहसास नही...!


दोस्त

जिन दरख्तों पे हो परिंदों के आशियाँ,
खुदा करे कभी वो दरख़्त ना कटें,

मेरे दिल को तड़्पाने वाले यह दुआ है मेरी,
मुझे जलाने में कहीँ तेरे हाथ ना जलें.

मैंने ठोकरें खायी और लड़्खडा के गिरा,
खुदा करे कभी तेरे पैरों कि ज़मीन ना हिले.

लोग तोड़ ही लेंगे फूलों को शाखों से,
फूलों से लदी डालियाँ कभी रास्तों में ना झुके.

दोस्त बन कर मुझे, जिन्दगी कि सज़ा देने वाले,
कभी कोई दुश्मन तुझे दोस्त बन के ना मिले.

Tuesday, August 21, 2007

वरना में तुझे चाहने की खता बार बार नही करता.................





मैं लफ्जों मैं कुछ भी इज़हार नही करता
इसका मतलब ये नही क मैं तुझे प्यार नही करता॥

चाहता हूँ मैं तुझे आज भी
पर तेरी सोच मैं अपना वक्त बेकार नही करता॥

तमाशा ना बन जाए कहीं मोहब्बत मेरी
इसी लिए अपने दर्द को नमोदार नही करता ॥

जो कुछ मिला है उसी मैं खुश हूँ मैं
तेरे लिए खुदा से तकरार नही करता॥

पर कुछ तो बात है तेरी फितरत में जालिम
वरना में तुझे चाहने की खता बार बार नही करता॥



Sunday, August 19, 2007

मिटटी में मिला दिया..........





तुमने
आंसू समझकर मुझे आंखों से गिरा दिया

समझकर बेगाना मिटटी में मिला दिया


मेरी खता माफ़ कर दो जो मैं यहाँ चला आया,

वर्ना हम तो जानते ही नही थे अपना नही है ये जहाँ,

नींद में डूबे जा रहे थे पर तुमने जगह दिया,


तुमने आंसू समझकर मुझे आंखों से गिरा दिया।


जाने कौन सी बहार थी जिसने मुझे उठा लिया,

लगाकर सीने से फिर मुझे भुला दिया,

जाने कौन से चमन का फूल था जो खिलने से पहले मुरझा गया,


तुमने आंसू समझकर मुझे आंखों से गिरा दिया।


जाने किस बेवफा मूरत को हमने दिल मैं बसा लिया,

हम भी कितने मासूम हैं उनके ग़मों को अपना मान लिया,

जाने हवा का कौन सा झोंका था जो जलते दीपक को बुझा गया,


तुमने आसूं समझकर मुझे आंखों से गिरा दिया।


हमे एक दिन उनकी बातों पर तरस आ गया,

सारी दुनिया को भुलाकर उनको अपना मान लिया

अपनी बदकिस्मती देखो सूरज उगने से पहले ही डूब गया,


तुमने आंसू समझकर मुझे आंखों से गिरा दिया,

समझकर बेगाना आज मुझे मिटटी में मिला दिया।




Friday, August 17, 2007

मासूम मोहब्बत.......










मासूम
मोहब्बत का बस इतना फ़साना है

कागज़ कि हवेली है और बारिश का ज़माना है


क्या शर्त-ए-मोहब्बत है , क्या शर्त-ए-ज़माना है

आवाज़ भी जमी है और गीत भी गाना है


उस पार उतरने कि उम्मीद बहुत कम है

कश्ती भी पुरानी है और तूफा को भी आना है


समझे या ना समझे वो अंदाज मोहब्बत के

एक शख्स को आंखों से शैर सुनना है


भोली सी अदा कोई फिर इश्क कि जिद्द पर है

फिर आग का दरिया है और डूब के जाना है

तेरी ख़ुशी के लिए.......
















तेरी ख़ुशी के लिए तेरा प्यार छोड़ चले



निकल के तेरे चमन से बहार छोड़ चले


तेरी ख़ुशी के लिए



जो
याद हमारी दिलायेगा तुझ को



तेरे लिए वो दिल-ए-बेकरार छोड़ चले


तेरी ख़ुशी के लिए




उठा के लाश हम अपनी खुद अपने कंधे पर


तड़्पती आरजू का मज़ार छोड़ चले


तेरी ख़ुशी के लिए



हमें खुद अपनी तबाही का गम नही लेकिन


मलाल यह है के तुम्हे सूगावार छोड़ चले

तेरी ख़ुशी के लिए



तेरी ख़ुशी के लिए तेरा प्यार छोड़ चले


निकल के तेरे चमन से बहार छोड़ चले



Thursday, August 16, 2007

मरते ही नही...


धङकने रूक जाती है पर मरते ही नही...
दूर हो जाते है पर बिछङते ही नही...
कुछ ऐसे लोग भी होते है.....
टूट जाते है पर बिखरते ही नही....

कुछ लोग होते है जो तनहा जीं नही सकते..
लेकिन जाने क्यो तनहाई से डरते भी नही...
जानते रहते है कि गिरना ही पड़ेगा दोस्ती की राह मे...
फिर भी "हम" जैसे पागल सम्भलते भी नही

तो रो दिए..........



पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए

पानी में अक्स चांद का देखा तो रो दिए



नगमा किसी ने साज़ पर छैङा तो रो दिए

गंचा किसी ने शाख से तोङा तो रो दिए



उङता हुआ गुबार सर रह देख कर

अंजाम हम ने इश्क का सोचा तो रो दिए



बदल फजा में आप कि तस्वीर बन गयी

साया कोई ख़्याल से गुजरा तो रो दिए



रंग-ए-शफ्क से आग शागोफों में लग गयी

मुबीन सागर हमारे हाथ से झलका तो रो दिए

Wednesday, August 15, 2007

बेवफा ना कहो..............


वो साथ छोड़ गया है तो बेवफा ना कहो

हर एक चेहरे को ज़ख्मों का आइना ना कहो

ये जिन्दगी तो है रहमत इससे सजा ना कहो


तमाम शहर ने नजरो पे क्यों उछाला मुझे

ये इतिफाक था तुम इस को हादसा ना कहो


ये और बात क दुश्मन हुआ है आज मगर

वो मेरा दोस्त था कल तक उससे बुरा ना कहो


हमारे ऐब हमें उँगलियों पे गीनवाओ

हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा ना कहो


ना जाने कौन सी मजबूरियों का कैदी हो

वो साथ छोङ गया है तो बेवफा ना कहो

मुझ को बे-वफ़ा रहने दो॥


ये जो हमारे दर्मियां रिश्ता है, इसे यूंही रहने दो

जो नही हो सकता कभी मुक्कद्दर हमारा, उसे ख़्वाब ही रहने दो


कल तक चांद के साथ हमारी कि गयी वो सारी बातें

चलो भूल जाएँ उन्हें, या फिर एक अफसाना ही रहने दो


तुम खुश हो अगर, एक नए हमसफ़र का हाथ थामे

मुझे फिर तुम इन्ही वीरानिओं में तनहा रहने दो


गुजरे लम्हों कि यादें तो हर पल मेरा दामन थामे रहेगी

पर आज जाते जाते अपने तमाम गम पहले कि तरह मेरे नाम ही रहने दो


छीन ली है तुम्हारे ख़ुलूस से अपनायत, वो सादगी वफ़ा

चलो अब तुम भी उसे किसी और को सौंप दो, मुझ को बे-वफ़ा रहने दो॥





बदलते रहते है...........


कभी नज़र पे कभी आंख पे,

तेरी नज़र के निशाने बदलते रहते है,

सकूं नही मिलता दुनिया को मरने के बाद भी,


जनाजे पर भी कंधे बदलते रहते है !!

ज़माने ने मुझको ठुकरा दिया है

ज़माने ने मुझको ठुकरा दिया है
मौत के और करीब ला दिया है
कभी मुड के जो पीछे देखता हूँ
सोचता हूँ, दुनिया ने मुझे क्या दिया हैं ?

वो जिसने मोहब्बत कि बाजी ना खेली
क्या ख़ाक ज़माने में वो इन्सान जिया है
हमारी तुम्हारी कुछ अलग बात है
इश्क तो दुनिया में बहुतों ने किया है

बिन पिए जो मैं लड्खड़ा रह हूँ
ये आंखों ने तेरी बता क्या किया है ?
मंज़िल कि तलाश में गया था मुसाफिर
रास्ते ने खुद उसको भटका दिया है !!

Monday, August 13, 2007

उसे भूल जा.......




कहॉ
आ कर रुके थे रास्ते..... कहॉ मौङ था उसे भूल जा

वो जो मिल गया उसे याद रख, जो नहीं मिल उसे भूल जा........


वो तेरे नसीब कि बारिश किसी और छत पे बरस घी

दिल-ए-बेखबर मेरी बात सुन , उसे भूल जा उसे भूल जा........


मैं तो गुम था तेरे धयान मैं, तेरे आस मैं तेरे गुमान मैं
सब कह गया mere कान मैं , मेरे पास आ उसे भूल जा.......


किसी आंख मैं नहीं अश्के-ए-गम, तेरे बाद नहीं कुछ भी कम

तुझे जिन्दगी नै भुला दिया, तू भी मुस्कूरा , उसे भूल जा.........


ना वो आंख ही तेरी आंख थी, ना वो खवाब ही तेरा खवाब था

दिल-ए-मुन्तज़िर तो ये किस लिए, तेरा जगना उसे भूल जा.........


ये जो दिन रात का है ख्याल सा, उसे देख ,

उस पर यकीन ना कर नहीं अक्स कोई भी मुस्तकिल, सर- ए-आइना उसे भूल जा.............


जो बिसात-ए-जान ही उलट गया, वो रस्ते से ही पलट गया

उसे रोकने से हसूल किया, उसे मत नीला, उसे भूल जा उसे भूल जा..............





जीत

१४ अगस्त २००७

चुपके चुपके रो लेना



जब सीना गम से बोझल हो और याद किसी कि आती हो

तुब कमरे मे बंद हो जाना और चुपके चुपके रो लेना


जुब आंखें बागी हो जाये और याद मे मेरी भरे आहें

फिर खुद को धोखा मत देना और चुपके चुपके रो लेना


जब पलके कुर्ब से मुंदी हो और तुम्हे मैं सताऊ तो

फिर मुँह पे तकिया रख लेना और चुपके चुपके रो लेना


यह दुनिया ज़ालिम दुनिया है, यह बात बुहत बनाएगी

तुम सामने सब के चुप रहना और चुपके चुपके रो लेना


जब बारिश चेहरा धो डाले और अश्क भी बूंदे लगने लगे

वो लम्हा हरगिज़ मत खोना और चुपके चुपके रो लेना....

~*~कुछ जल्दी ना कर दी~*~

कुछ जल्दी ना कर दी तुमने जाने की ए सनम मेरे,
अभी तो हमारी अनमोल जिन्दगी की शुरुआत हुई थी सनम...

पलकों को मूंदा तो उठाना गए तुम भूल,
फकत दिन गुज़रा था , ज़रा सी तो रात हुई थी सनम ...

रोज़ रोज़ यहाँ टूटतेँ हैं दिल कुछ नयी बात नहीं,
तुमने क्यों लगा ली मन से, बेरुखी जो तुम्हारे साथ हुई थी सनम...

सफ़र-ए-जिन्दगी में आते ही रहते हैं इम्तिहान हज़ार,
थोडा सा कदम ही तो लङखङाये थे, कोन सी तुम्हारी मात हुई थी सनम....

आज देखा बारिश को तो भर आया यों बे-इख़्तियार दिल मेरा,
याद आई वो जो तुम्हारी निगाहों से दर्द की एक बार बरसात हुई थी सनम...

मैं हर गम सह लूँ मगर यह गम मुझको सतायेगा,
की ना हमारी ठीक से आखरी मुलाक़ात हुई थी सनम....

तुम जहाँ भी हो, मेरा खुदा रोशन वो जगह करे,
दुआ ही मेरे पास अब तुम्हारे लिए एक सौगात है मेरे सनम .....






Monday, July 30, 2007

कहूँ कैसे



ग़ज़ल तो लिखी है पर कहूँ कैसे
किसी कि बात किसी से कहूँ कैसे !

तेरी बात पर चुप एक ज़माना है
तेरी बात पर बात फिर कहूँ कैसे!

सुना है वो चाहत के देश से लौटा है
उसे गम के फ़साने फिर कहूँ कैसे!

ना जान सका तेरे दिल कि बात अब तक
तुझ से अपने दिल कि बात फिर कहूँ कैसे !!
जीत
३० जुलाई २००७




ना रहे अब वो हम



बदल सा गया कुछ, ना रहे अब वो हम
खो गए ख़याल, टूट गयी है कलम
चलते चलते लिया वक़्त ने यूँ मोड़
जा रहे थे कहीँ, चल दिए कहीँ हम
ना कहने को कुछ, ना सुनने कि ख्वाहिश
हर जज्बे से खाली जैसे अब हुए हम
अस्खों का समुन्दर उफान रह है दिल मैं
खुस्क हैं लेकिन, नहीं हैं आँखें नम
खो रहे हैं पुराने, जुड़ रहे नए रिश्ते
वक़्त दे रह है एक नए इन्सान को जनम !!