समझ न सके दूरियां क्यूँ थी,
जुबान पर थे लफ्ज़ फिर मजबूरियों क्यूँ थी,
दिलों की बात अगर छाए हकीक़त होती है,
हमारे दर्मियाँ वोह खामोशियाँ क्यूँ थी,
बुने थे हमने भी कुछ रेशमी धागों के ख्वाब,
हमारे हिस्से में वोह काली दूरियां क्यूँ थी,
इधर होंठों पैर अज़ब सी जूम्बिश,
उधर कुछ राज़ दिल के तलों में,
समझ न सके न सरगोशियाँ हवाओं की,
हमारे हिस्से में सेहरा की आंधियां क्यूँ थी,
तुम्हे गुरेज़ मेरी चंद बातों से,
मैं भी परवाज़ kaa था हामिल,
पहुँच के मिल के पत्थर पर सोचता हूँ,
सफर तनहा to फिर वोह दूरियां क्यूँ थी…