Wednesday, December 26, 2007

जब से लगन लगी !


जब
से लगन लगी !

शब्द मेरे और सोच तुम्हारी
बनी नयी एक कविता न्यारी
उतर गयी कागज़ पर सारी
ऐसी प्रीत पगी !

गीतों मे मिलती और खोती
सांस सांस मे ख़ुशी पिरोती
एक नया एहसास भिगोती
सुर कि बही नदी !

अनजाने रिश्तों का बन्धन
यादों मी डूबा डूबा मन
प्यार भरा कैसा अपनापन
बढ़ता घडी घडी !

Tuesday, December 18, 2007

आओ यादों के फूल सजा ले हम....





आओ यादों के फूल सजा ले हम

कभी तुम याद आओ हमे

कभी याद तुम्हे आये हम

दिल कि चौखट पे घावों ने किये हैं बसेरे

कभी सहलाओं तुम कभी मरहम लगाए हम

यूं न मिलना हम से जैसे मिलते हो किसी अजनबी से

कभी लगाना गले हमको

कभी पहनाये हार बाहों के हम

मेरे दिल पे आज भी हैं

यादें उन मुलाकातों कि

कभी आना तेरा दहलीज पेर मेरी

कभी परदों से देखते थे हम

आये सनम न कटे अब इन्जेज़ार की ये घड़ियाँ

यादों की फूलों से कैसे ज़िंदगी गुजारे हम


Monday, December 17, 2007

तब याद तुम्हारी आती है....


तब याद तुम्हारी आती है....

जब यूँही कभी बैठे बैठे,
कुछ याद अचानक आ जाये

हर बात से दिल बेजार सा हो,
हर चीज़ से दिल घबरा जाये

करना भी मुझे कुछ और ही हो,
कुछ और ही मुझ से हो जाये

कुछ और ही सोचूं में दिल में,
कुछ और ही होठों पर आ जाये

ऐसे ही किसी एक लम्हे में,
चुपके से कभी खामोशी में

कुछ फूल अचानक खिल जाये,
कुछ बीते लम्हे याद आयें

तब याद तुम्हारी आती है ...


जब चांदनी दिल के आँगन में,
कुछ कहने मुझ से आ जाये

इक ख्वाबेदा से छुते कोई,
एहसास परेशान चेहरे पर आ जाये

जब जुल्फ परेशान चेहरे पर,
कुछ और परेशान हो जेए

कुछ दर्द भी दिल में होने लगे,
और सांस भी बोझल हो जाये

ऐसे ही किसी एक लम्हे में,
चुपके से कभी खामोशी में

कुछ फूल अचानक खिल जाये,
कुछ बीते लम्हे याद आये

तब याद तुम्हारी आती है...


जब शाम ढले चलते चलते,
मंजिल का न कोई नाम मिले

इक हँसता हुआ आगाज़ मिले,
इक रोता हुआ अंजाम मिले

पलकों के लरजते अश्कों से,
इस दिल को कोई पैगाम मिले

और सारी वफाओं के बदले,
मुझ को ही कोई इल्जाम मिले

ऐसे हे किसी एक लम्हे में,
चुपके से कभी खामोशी में

कुछ फूल अचानक खिल जाये,
कुछ बीते लम्हे याद आये

तब याद तुम्हारी आती है....

Wednesday, December 5, 2007

मिर्जा गालिब

की वफ़ा हमसे तो ग़ैर उसे जफ़ा कहते हैं
होती आई है के अच्छों को बुरा कहते हैं


आज हम अपनी परेशानी-ए-खातिर उनसे
कहने जाते तो हैं, पर देखिए क्या कहते हैं


अगले वक्तों के हैं ये लोग, इन्हेंन कुछ न कहो
जो मय-ओ-नगमों को अन्दोहरूबा कहते हैं


[अन्दोहरूबा=cure for pain or sorrow]


दिल मैं आ जाये है, होती है जो फुरसत गश से
और फिर कौन से नाले को रसा कहते हैं ?


[गश=senseless/in a faint; रसा=with a long reach]


है पर-ए-सरहद-ए-इदराक से अपना मस्जूद
किबले को, अहल-ए-नज़र, किब्लानुमा कहते हैं


[पर-ए-सरहद-ए-इदराक=beyond the boundaries of knowledge]
[मस्जूद=to whom one bows i.e. God]


पा-ए-अफागार पे जब से तुझे रहम आया है
खार-ए-राह को तेरे हम मैहर-ए-गिया कहते हैं

[पा-ए-अफागार=wounded feet; खार-ए-राह=thorn in the road]
[मैहर-ए-गिया=(blade of) grass of kindness]


इक शरार दिल मैं है, उस से कोई घबराएगा क्या
आग मतलब है हमको, जो हवा कहते हैं



देखिए लाती है उस शोख की नाख्वत क्या रंग
उस की हर बात पे हम नाम-ए-खुदा कहते हैं


[नाख्वत=pride]


वहशत-ओ-शेफ्ता अब मर्सिया कहवें शायद
मर गया "ग़ालिब"-ए-आशुफ्तानावा कहते हैं


[वहशत-ओ-शेफ्ता=two poets of that time; मर्सिया=eulogy/poem of sorrow]
[आशुफ्तानावा=one who speaks nonsense]