Monday, August 13, 2007

~*~कुछ जल्दी ना कर दी~*~

कुछ जल्दी ना कर दी तुमने जाने की ए सनम मेरे,
अभी तो हमारी अनमोल जिन्दगी की शुरुआत हुई थी सनम...

पलकों को मूंदा तो उठाना गए तुम भूल,
फकत दिन गुज़रा था , ज़रा सी तो रात हुई थी सनम ...

रोज़ रोज़ यहाँ टूटतेँ हैं दिल कुछ नयी बात नहीं,
तुमने क्यों लगा ली मन से, बेरुखी जो तुम्हारे साथ हुई थी सनम...

सफ़र-ए-जिन्दगी में आते ही रहते हैं इम्तिहान हज़ार,
थोडा सा कदम ही तो लङखङाये थे, कोन सी तुम्हारी मात हुई थी सनम....

आज देखा बारिश को तो भर आया यों बे-इख़्तियार दिल मेरा,
याद आई वो जो तुम्हारी निगाहों से दर्द की एक बार बरसात हुई थी सनम...

मैं हर गम सह लूँ मगर यह गम मुझको सतायेगा,
की ना हमारी ठीक से आखरी मुलाक़ात हुई थी सनम....

तुम जहाँ भी हो, मेरा खुदा रोशन वो जगह करे,
दुआ ही मेरे पास अब तुम्हारे लिए एक सौगात है मेरे सनम .....






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