Friday, March 19, 2010

~*शोक_ऐ_आवारगी*~

आज इस शहर में कल नए शहर में
बस इसी लहर में उडते पत्तों के पीछे उडता रहा
शोक_ऐ_आवारगी

मुस्करा कर निगाहें मिलाये कोइ
दिल में ए
कोइ हर क़दम पर निगाहें बिछाता रहे
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा

शोक_ऐ_आवारगी

मेरे शानो पे जुल्फो को लहराओगे
यूँ ख्यालों की दुनिया बसता रहा
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा रहा

शोक_ऐ_ आवारगी

यूँ अदा हम ने फ़र्ज़-ऐ-मोहब्बत किया
आंसुओं को पिया ज़ख्म खाता रहा मुस्कराता रहा
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा

शोक_ऐ_आवारगी

उस गली क बहुत कम्नगर लोग थे
फित्नगर लोगो पे हाय क्यूँ दिल की दोलत लुटाता रहा
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा

शोक_ऐ_आवारगी !!!

मोहब्बत है......... .....

मोहब्बत है......... .....
किसी को बे-लोस चाहते रहना
किसी को बे-गरज मांगते रहना
मोहब्बत है......... .......
किसी के सामने रहना
मगर दूरियां सहना
मोहब्बत है......... ..
खुद सारे दुःख ले लेना
और किसी को खुशियाँ देना
मोहब्बत है......... ...
किसी को सारी दुआएँ दे देना
और खुद बे-फैज़ रह जाना........ .

पहचान पाए वो जो नज़र कितनी दूर है....

ए शाम-इ-ग़म बता के सहर कितनी दूर है
आंसू नहीं जहाँ वो नगर कितनी दूर है
दामन तोडती नहीं जहाँ किसी की याद
वो ज़िन्दगी की राह गुज़र कितनी दूर है
राहों पे देखता है हर इक बन के अजनबी
पहचान पाए वो जो नज़र कितनी दूर है....