Thursday, November 25, 2010

सुनसान हैं रास्ते.............!!

सुनसान हैं रास्ते सुनी हैं तेरी राहें
कब से लगी हुई हैं इन पर मेरी निगाहें

वोह शर्मा कर हसीं पलकें झुका लेना
वोह जेरे लैब ज़रा सा मुस्करा देना
मेरी जान न ले लें कहीं तेरी अदाएं
अभी तुम कहते हो हमें महफ़िल से अपनी उठ जाने को
मगर याद आएँगी इक रोज़ तुम्हें मेरी वफायें
यह बेरुखी यह तेरी लापरवाही का आलम मुझे है मंज़ूर

दिल्बर्दाश्ता न कर पाएंगी मुझे ये तेरी जफाएं
तुम्हें ये जिद के, न रखोगे रह - ओ - रसम मुझ से
मेरा यह ईमान के, रंग लायेंगी आखिर मेरी दुआएं.

भुला दे मुझ को........................!!

गुनगुनाते हुए आँचल की हवा दे मुझ को
उंगलियाँ फेर के बालों मैं सुला दे मुझ को

जिस तरह फालतू गुलदान पडें रहते हैं
अपने घर के किसी कोने से लगा दे मुझ को

याद कर के मुझे तकलीफ होती होगी
एक किस्सा हूँ पुराना सा भुला दे मुझ को

डूबता डूबता आवाज़ तेरी सुन जाऊं
आखिरी बार तू साहिल से सदा दे मुझ को

मैं तेरे हिज्र मैं चुप चाप न मर जाऊं कहीं मैं
हो सके तओ आ के रुला दे मुझ को


देख मैं होगया बदनाम किताबों की तरह
मेरी तशीर न कर अब तू जला दे मुझ को

रूठना तेरा मेरी जान लिए जाता है
ऐसे नाराज़ न हो हंस के दिखा दे मुझ को

और कुछ भी न माँगा मेरे मालिक तुझ से
उस की गलियों मैं पड़ी ख़ाक बना दे मुझ को

लोग आहते हैं के ये इश्क निगल जाता है
मैं भी इस इश्क मैं आया हूँ, दुआ दे मुझे को

यही औकात है मेरी तेरे जीवन मैं के मैं
कोई कमज़ोर सा लम्हा हूँ, भुला दे मुझ को

Sunday, May 23, 2010

खुद अपनी पहचान से अंजान हूँ मैं

खुद अपनी पहचान से अंजान हूँ मैं,
अपनी पहचान आपसे करवाऊँ कैसे ??
कुछ सिमटी हुई छोटी सी दूनिया है मेरी ,
इस दिल की गहराइयों में आपको ले जाऊं कैसे ??
आसमान की ऊँचाइयों तक मेरे ख्वाब बिखरे हैं ,
अपने अरमानों की हद आपको दिखाऊँ कैसे ??
मुस्कुराना मेरी आदत है आंसुओं को छुपा कर ,
पर हर ग़म को अपनी हसी से बहलाऊँ कैसे ??
दोस्ती ही मेरी चाहत है और दोस्त मेरी ज़िन्दगी ,
इश्क से अपनी बेरुखी का सबब बताऊँ कैसे ??
होकर मेरी सरहदों में शामिल आप ही जान लो मुझे ,
किस्सी और तरह आपको खुद से मिलवाऊँ कैसे ??

Monday, April 12, 2010

कसूर सिर्फ इतना था !!!!!

जब ज़िन्दगी को समझा तो ज़िन्दगी से दूर थे हम
मरना चाहा पर जीने को बेवजह मजबूर थे हम
हर सजा बिना आवाज़ कबूल की हमने सर झुका कर
कसूर सिर्फ इतना था की बस बेकसूर थे हम !!!!!

Friday, March 19, 2010

~*शोक_ऐ_आवारगी*~

आज इस शहर में कल नए शहर में
बस इसी लहर में उडते पत्तों के पीछे उडता रहा
शोक_ऐ_आवारगी

मुस्करा कर निगाहें मिलाये कोइ
दिल में ए
कोइ हर क़दम पर निगाहें बिछाता रहे
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा

शोक_ऐ_आवारगी

मेरे शानो पे जुल्फो को लहराओगे
यूँ ख्यालों की दुनिया बसता रहा
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा रहा

शोक_ऐ_ आवारगी

यूँ अदा हम ने फ़र्ज़-ऐ-मोहब्बत किया
आंसुओं को पिया ज़ख्म खाता रहा मुस्कराता रहा
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा

शोक_ऐ_आवारगी

उस गली क बहुत कम्नगर लोग थे
फित्नगर लोगो पे हाय क्यूँ दिल की दोलत लुटाता रहा
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा

शोक_ऐ_आवारगी !!!

मोहब्बत है......... .....

मोहब्बत है......... .....
किसी को बे-लोस चाहते रहना
किसी को बे-गरज मांगते रहना
मोहब्बत है......... .......
किसी के सामने रहना
मगर दूरियां सहना
मोहब्बत है......... ..
खुद सारे दुःख ले लेना
और किसी को खुशियाँ देना
मोहब्बत है......... ...
किसी को सारी दुआएँ दे देना
और खुद बे-फैज़ रह जाना........ .

पहचान पाए वो जो नज़र कितनी दूर है....

ए शाम-इ-ग़म बता के सहर कितनी दूर है
आंसू नहीं जहाँ वो नगर कितनी दूर है
दामन तोडती नहीं जहाँ किसी की याद
वो ज़िन्दगी की राह गुज़र कितनी दूर है
राहों पे देखता है हर इक बन के अजनबी
पहचान पाए वो जो नज़र कितनी दूर है....