Saturday, May 3, 2008

जो कभी हुआ ही नही.......

मैं भूल जाऊँ तुम्हें
अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ
तो किस तरह बोलूँ

कह तुम तो फिर भी हकीकत हूँ
कोई खवाब नही
यहाँ तो दिल का यह आलम है के क्या कहूं
कम्बख्त
भुला न पाया वो सिलसिला
जो था ही नही
वो इक ख्याल
जो आवाज़ तक गया ही नही
वो इक बात
जो मैं कह नहीं सका तुम से
वो इक रुब्त
जो हम मैं कभी रहा ही नही
मुझे याद है वो सब
जो कभी हुआ ही नही.......