मेरे खवाबों के गुलशन मैं,
खिजाएँ रक्स करती हें,
मेरे होंठों कि लर्जिश मैं,
वफायें रक्स करती हें...
मुझे वो लाख तड़्पाये,
मगर उस शख्स कि खातिर,
मेरे दिल के अंधेरों मैं,
दुआएं रक्स करती हें....
उसे कहना के लौट आये,
सुलगती शाम से पहली,
किसी कि खुश्क आंखों मैं,
सदायें रक्स करती हें..........
खुदा जाने कैसी कशिश है , तेरी यादों मैं...???
मैं तेरा jikra छेडूँ तो ,
हवाएं रक्स करती हें...!!!!
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