Wednesday, December 26, 2007

जब से लगन लगी !


जब
से लगन लगी !

शब्द मेरे और सोच तुम्हारी
बनी नयी एक कविता न्यारी
उतर गयी कागज़ पर सारी
ऐसी प्रीत पगी !

गीतों मे मिलती और खोती
सांस सांस मे ख़ुशी पिरोती
एक नया एहसास भिगोती
सुर कि बही नदी !

अनजाने रिश्तों का बन्धन
यादों मी डूबा डूबा मन
प्यार भरा कैसा अपनापन
बढ़ता घडी घडी !

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