अजीबी पगली सी लड़की है
मुझे हर ख़त मैं लिखती है..
जवाब में उस को लिखता हूँ ..
मेरी मसरूफियत देखो !
सुबह से शाम कोलेज़ मैं
उम्र का दिया जलता है
फिर उस के बाद दुनिया कि
कई मजबूरियां पावों मैं
बैड़ी दाल रखती हैं!!!
मुझे बे-फिक्र, चाहत से भरे सपने नही दिखते
तेहेलने, जगने, रोने कि मोहलत ही नहीं मिलती
सितारो से मिले अरसा हुआ..नाराज़ हूँ शायद
किताबों से शौक़ मेरा अभी
वैसे हे क़येम है
फर्क इतना पड़ा है
अब उन्हें अरसे मैं पढता हूँ
तुम्हइन किस ने कहा पगली तुम्हे में याद करता हूँ
के मैं खुद को भुलाने कि जुस्तजू मैं हूँ
तुम्हे न याद आने कि जुस्तजू मैं हूँ
मगेर यह जुस्तजू मेरी बहुत नाकाम रहती है
मेरे दिन रात मैं अब भी तुम्हारी शाम रहती है
मेरे लफ्जोंन कि हेर माला तुम्हारे नाम रहती है
तुम्हे किस ने कहा पगली तुम्हे में याद करता हूँ !!
पुरानी बात है जो लोग अक्सर गुनगुनाते हैं
उन्हें हम याद करते हैं जिन्हें हम भूल जाते हैं
अजीबी पगली सी लड़की है
मेरी मसरूफियत देखो
तुम्हे दिल से भुकुं तो तुम्हारी याद आये न!
तुम्हे दिल से भुलाने कि मुझे फुरसत नही मिलती
और इस मसरूफ जीवन मे
तुम्हरे ख़त का एक जुमला
“तुम्हें मैं याद आती हूँ ?”
मेरी चाहत कि शिद्दत मैं कमी होने नही देता
बहुत रातें जगाता है मुझे सोने नही देता
सो अगली बार अपने ख़त मैं यह जुमला नही लिखना
अजीबी पगली सी लड़की है
मुझे फिर भी ये लिखती है
मुझे तुम याद करते हो?
तुम्हे मैं याद आती हूँ ?”
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