Monday, December 17, 2007

तब याद तुम्हारी आती है....


तब याद तुम्हारी आती है....

जब यूँही कभी बैठे बैठे,
कुछ याद अचानक आ जाये

हर बात से दिल बेजार सा हो,
हर चीज़ से दिल घबरा जाये

करना भी मुझे कुछ और ही हो,
कुछ और ही मुझ से हो जाये

कुछ और ही सोचूं में दिल में,
कुछ और ही होठों पर आ जाये

ऐसे ही किसी एक लम्हे में,
चुपके से कभी खामोशी में

कुछ फूल अचानक खिल जाये,
कुछ बीते लम्हे याद आयें

तब याद तुम्हारी आती है ...


जब चांदनी दिल के आँगन में,
कुछ कहने मुझ से आ जाये

इक ख्वाबेदा से छुते कोई,
एहसास परेशान चेहरे पर आ जाये

जब जुल्फ परेशान चेहरे पर,
कुछ और परेशान हो जेए

कुछ दर्द भी दिल में होने लगे,
और सांस भी बोझल हो जाये

ऐसे ही किसी एक लम्हे में,
चुपके से कभी खामोशी में

कुछ फूल अचानक खिल जाये,
कुछ बीते लम्हे याद आये

तब याद तुम्हारी आती है...


जब शाम ढले चलते चलते,
मंजिल का न कोई नाम मिले

इक हँसता हुआ आगाज़ मिले,
इक रोता हुआ अंजाम मिले

पलकों के लरजते अश्कों से,
इस दिल को कोई पैगाम मिले

और सारी वफाओं के बदले,
मुझ को ही कोई इल्जाम मिले

ऐसे हे किसी एक लम्हे में,
चुपके से कभी खामोशी में

कुछ फूल अचानक खिल जाये,
कुछ बीते लम्हे याद आये

तब याद तुम्हारी आती है....

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