Monday, October 29, 2007

कुछ ऐसे...

के मेरी आंखों को कुछ अच्छा न लगे कुछ ऐसे तुम मुझसे नज़रें मिलाना
के दिन का हर पल हर लम्हा सुहाना लगे कुछ ऐसे मेरे साथ तुम वक्त बिताना

के हँसी मेरे लबों से उतरना न चाहे कुछ ऐसे मेरे लिए तुम मुस्कुराना
के हो जाये मुझे खुशियों कि आदत कुछ ऐसे मेरी ज़िंदगी से ग़मों को मिटाना

के मुझमे भी जगे सपने सच करने कइ उम्मीद कुछ ऐसे तुम मेरे लिए ख्वाब सजाना
के मैं हर रात का इंतज़ार करूं कुछ ऐसे तुम मुझे आसमान का वो तारा दिखाना

के तुम देखते रहो मुझे हर दम कुछ ऐसे मुझे अपने सामने बिठाना
के मैं नाराज़ होना चाहूँ बार बार कुछ ऐसे तुम मुझे रूठने पर मानना

के करता रहूँ तुझे प्यार उम्र भर कुछ ऐसे शमा-ए-मोहब्बत को जलाना
के हो मेरा बसेरा कहीं और नामुमकिन कुछ ऐसे कुछ ऐसे मुझे अपने दिल मी बसाना

के बन जाओ मेरे दिल कि धड़कन कुछ ऐसे तुम मेरे दिल मे समाना
के नामंजूर हो मुझे किसी और का होना कुछ ऐसे तुम मुझे अपना बनाना

के मुझे बारिश कि बूंदे भी अधूरी लगे कुछ ऐसे मुझ पर तुम प्यार बरसाना
के बन जाये हम मोहब्बत कि मिसाल कुछ ऐसे तुम इस रिश्ते को निभाना

के ज़िंदगी का आखरी पल भी हसीं लगे कुछ ऐसे मुझे तुम गले से लगाना
के मौत भी हमे जुदा न कर पाए कुछ ऐसे मैं तेरा हो जाऊं...

कुछ ऐसे॥तुम मेरी हो जाना !!

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