दुनिया बदली
मगर प्यार का रंग न बदला
अब भी
खिले फूल के अन्दर
खुशबू होती है
गहरी पीड़ा में अक्सर हाँ
आँखें रोती हैं
कविता बदली, पर
लय-छंद-प्रसंग नहीं बदला
वर्षा होती
आसमान में बादल
घिरने पर
पात बिखर जाते हैं
जब भी आता है पतझर
पर पेड़ों से
पत्तों का आसंग नहीं बदला
हरदम भरने को उड़ान
तत्पर रहती पाँखें
मौसम आने पर
फूलों से
लदती हैं शाख़ें
बदली हवा
सुबह होने का ढंग नहीं बदला
This blog contains my poems And I think that only my poems can describe me better.
Thursday, February 19, 2009
यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो !!!
यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो
अपने ही गले के लिये तलवार न माँगो
गिर जाओगे तुम अपने मसीहा की नज़र से
मर कर भी इलाज-ए-दिल-ए-बीमार न माँगो
खुल जायेगा इस तरह निगाहों का भरम भी ,
काँटों से कभी फूल की महकार न माँगो ।
सच बात पे मिलता है सदा ज़हर का प्याला ,
जीना है तो फिर जीने के इज़हार न माँगो ।
उस चीज़ का क्या ज़िक्र जो मुम्किन ही नहीं है,
सहरा में कभी साया-ए-दीवार ना माँगो ।
अपने ही गले के लिये तलवार न माँगो
गिर जाओगे तुम अपने मसीहा की नज़र से
मर कर भी इलाज-ए-दिल-ए-बीमार न माँगो
खुल जायेगा इस तरह निगाहों का भरम भी ,
काँटों से कभी फूल की महकार न माँगो ।
सच बात पे मिलता है सदा ज़हर का प्याला ,
जीना है तो फिर जीने के इज़हार न माँगो ।
उस चीज़ का क्या ज़िक्र जो मुम्किन ही नहीं है,
सहरा में कभी साया-ए-दीवार ना माँगो ।
जिंदगी में आ गया ठहराव !!!!!
जिंदगी में आ गया ठहराव ,
अब क्या कीजिये ? आस्तीन में
बसे है मुल्क के विष धर कई ,
फन उठाये डस रहा
अलगाव क्या कीजिये ?
आज के नेता कुर्सी के वास्ते आत्मा से बिके है ,
जनतन्त्र के नाम पर वादों पे टिके है ,
जब जोहरी ही andha हो phir hire का क्या maul ?
जब janta jage to खुल जाए sab ki poll।
अब क्या कीजिये ? आस्तीन में
बसे है मुल्क के विष धर कई ,
फन उठाये डस रहा
अलगाव क्या कीजिये ?
आज के नेता कुर्सी के वास्ते आत्मा से बिके है ,
जनतन्त्र के नाम पर वादों पे टिके है ,
जब जोहरी ही andha हो phir hire का क्या maul ?
जब janta jage to खुल जाए sab ki poll।
Subscribe to:
Posts (Atom)