Sunday, June 14, 2009

ख्वाहिशों को सर पे चढाया न करो........

पूनम की रात आँगन में आया न करो
चांदनी को इस तरह लजाया न करो

मुझ जैसे लोग हो न जायें बदगुमान कहीं
बेवजह ही तुम यूँ मुस्कुराया न करो


जो ख़ुद ही बिखरा है, वो किसी को क्या देगा
टूटते तारे को यूँ अजमाया न करो

मन की तेरे दर्द ने कुछ शेर दे दिए
पर बहुत हुआ अब और सताया न करो

खता पे मेरी मुझसे नाराज़ भी नहीं
अपने दीवाने को यूँ पराया करो

मैं संग हो गया तो कौन पूछेगा तुझे
ऐ खुदा मुझको इतना रुलाया न करो

टूटेंगी तो सीधे आँखों में चुभेंगी आतिश
ख्वाहिशों को सर पे चढाया न करो........

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