त्तितली जो एक मुझ को मिली थी किताब में
वोह अपना अक्स छोडः गयी मेरे खुवाब में
अब तक वोह मेरे ज़हन में उलझा सवाल है
शामिल रही जो हर घरी मेरे निसाब में
आँखों में नींद है न कोई खवाब दूर तक
रहते हैं हम भी आज कल वैसे अज़ाब में
मिलता है गर्दिशों से गले लग के चाँद भी
आये थे सिमट के फासले कितने सराब में
आखिर मेरी वफ़ा का मुझे क्या सिला मिला
लिखा न एक हर्फ़ भी उस ने जवाब में
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