यूँ ही उम्मीद दिलाते हैं ज़माने वाले
कब पलटते हैं भला छोड़ के जाने वाले
तू कभी देख झुलसते हुए सेहरा मैं दरख्त
केसे जलते हैं वफाओं को निभाने वाले
उन से आती है तेरे लम्स की खुशबु अब तक
ख़त निकले हुए बैठा हों पुराने वाले
आ कभी देख ज़रा उन की शबों मैं आकर
कितना रोते हैं ज़माने को हंसाने वाले
कुछ तो आँखों की ज़ुबानी भी कहे जाते हैं
राज़ होते नही सब मुंह से बताने वाले
आज न चाँद न तारा है न जुगनू कोई
राब्ते ख़तम हुए उन से मिलाने वाले......
No comments:
Post a Comment