Friday, March 19, 2010

~*शोक_ऐ_आवारगी*~

आज इस शहर में कल नए शहर में
बस इसी लहर में उडते पत्तों के पीछे उडता रहा
शोक_ऐ_आवारगी

मुस्करा कर निगाहें मिलाये कोइ
दिल में ए
कोइ हर क़दम पर निगाहें बिछाता रहे
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा

शोक_ऐ_आवारगी

मेरे शानो पे जुल्फो को लहराओगे
यूँ ख्यालों की दुनिया बसता रहा
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा रहा

शोक_ऐ_ आवारगी

यूँ अदा हम ने फ़र्ज़-ऐ-मोहब्बत किया
आंसुओं को पिया ज़ख्म खाता रहा मुस्कराता रहा
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा

शोक_ऐ_आवारगी

उस गली क बहुत कम्नगर लोग थे
फित्नगर लोगो पे हाय क्यूँ दिल की दोलत लुटाता रहा
उडते पत्तों के पीछे उडता रहा

शोक_ऐ_आवारगी !!!

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