जिंदगी में आ गया ठहराव ,
अब क्या कीजिये ? आस्तीन में
बसे है मुल्क के विष धर कई ,
फन उठाये डस रहा
अलगाव क्या कीजिये ?
आज के नेता कुर्सी के वास्ते आत्मा से बिके है ,
जनतन्त्र के नाम पर वादों पे टिके है ,
जब जोहरी ही andha हो phir hire का क्या maul ?
जब janta jage to खुल जाए sab ki poll।
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